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अ꣡बो꣢ध्य꣣ग्निः꣢ स꣣मि꣢धा꣣ ज꣡ना꣢नां꣣ प्र꣡ति꣢ धे꣣नु꣡मि꣢वाय꣣ती꣢मु꣣षा꣡स꣢म् । य꣣ह्वा꣡ इ꣢व꣣ प्र꣢ व꣣या꣢मु꣣ज्जि꣡हा꣢नाः꣣ प्र꣢ भा꣣न꣡वः꣢ सस्रते꣣ ना꣢क꣣म꣡च्छ꣢ ॥१७४६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अबोध्यग्निः समिधा जनानां प्रति धेनुमिवायतीमुषासम् । यह्वा इव प्र वयामुज्जिहानाः प्र भानवः सस्रते नाकमच्छ ॥१७४६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡बो꣢꣯धि । अ꣣ग्निः꣢ । स꣣मि꣡धा꣢ । स꣣म् । इ꣡धा꣢꣯ । ज꣡ना꣢꣯नाम् । प्र꣡ति꣢꣯ । धे꣣नु꣢म् । इ꣣व । आयती꣢म् । आ꣣ । यती꣢म् । उ꣣षा꣡स꣢म् । य꣣ह्वा꣢ । इ꣣व । प्र꣢ । व꣣या꣢म् । उ꣣ज्जि꣡हा꣢नाः । उ꣣त् । जि꣡हा꣢꣯नाः । प्र । भा꣣न꣡वः꣢ । स꣣स्रते । ना꣡क꣢꣯म् । अ꣡च्छ꣢꣯ ॥१७४६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1746 | (कौथोम) 8 » 3 » 13 » 1 | (रानायाणीय) 19 » 4 » 1 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ७३ क्रमाङ्क पर यज्ञ और परमात्मा के विषय में हो चुकी है। यहाँ यज्ञाग्नि के वर्णन द्वारा जीवात्मा-परमात्मा के विषय की सूचना दी गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(धेनुम् इव) दुधारू गाय के समान (आयतीम्) आती हुई (उषासम् प्रति) उषा को लक्ष्य करके (जनानाम्) यजमानों की (समिधा) समिधाओं के होम से (अग्निः) यज्ञाग्नि (अबोधि) प्रबुद्ध हुआ है। (वयाम्) शाखा को (प्र उज्जिहानाः) ऊपर उठाते हुए (यह्वाः इव) बड़े-बड़े वृक्षों के समान (भानवः) अग्नि-ज्वालाएँ (नाकम् अच्छ) सूर्य की ओर (प्र सस्रते) उठ रही हैं ॥१॥ यहाँ स्वभावोक्ति और उपमा अलङ्कार हैं ॥१॥

भावार्थभाषाः -

जैसे उषा के आने पर यज्ञाग्नि सूर्य की ओर उठती है, वैसे ही उपासकों की आत्मा रूप अग्नि परमात्मा की ओर उठती है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ७३ क्रमाङ्के यज्ञविषये परमात्मविषये च व्याख्याता। अत्र यज्ञाग्निवर्णनमुखेन जीवात्मपरमात्मनोर्विषयः सूच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

(धेनुमिव) पयस्विनीं गामिव (आयतीम्) आगच्छन्तीम् (उषासम् प्रति) उषसम् अभिलक्ष्य (जनानाम्) यजमानानाम् (समिधा) समिद्धोमेन (अग्निः) यज्ञाग्निः (अबोधि) प्रबुद्धोऽस्ति। (वयाम्) शाखाम् (प्र उज्जिहानाः) प्रोद्गमयन्तः (यह्वाः इव) महान्तो वृक्षाः इव (भानवः) यज्ञाग्नेर्ज्वालाः (नाकम् अच्छ) सूर्यं प्रति (प्र सस्रते) प्रसरन्ति ॥१॥२ अत्र स्वभावोक्तिरुपमालङ्कारश्च ॥१॥

भावार्थभाषाः -

यथोषसि समागतायां यज्ञाग्निः सूर्यं प्रत्युद्गच्छति तथैवोपासकानामात्माग्निः परमात्मानं प्रति प्रसरति ॥१॥